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Showing posts from June, 2009

मैंने गाँधी को देखा है .....

मैंने गाँधी को देखा है अंधेरे गलियारों में सिसकिया भरते हुए । जब जब असत्य जहर बन कर फैला है , जब जब अन्याय कहर बन कर टूटा है , जब जब चली हैं गोलियां ,जब देवियों की लगी हैं बोलियाँ मैंने गाँधी को देखा है । जब जब गिरी हैं निर्दोष लाशें ,जब जब हुए हैं दंगे बेतहाशे जब जब हुए अत्याचार असहनीय ,जब अपराधी ही बन बैठे माननीय । मैंने गाँधी को देखा है । अंधेरे गलियारों में सिसकियाँ भरते हुए । अपनी लाठी पीटते हुए । क्या तुमने नही देखा ? c@ written by- Ravi nitesh ravinitesh@gmail.com (रवि नितेश )